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विकलांगता को मात देकर आईएएस अफसर बनीं ‘इरा सिंघल’, आज लोगों के लिए प्रेरणा

हर व्यक्ति अपने जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहता है लेकिन सफलता सिर्फ सोच विचार करने से नहीं मिलती है। इसके लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। जीवन में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। कई लोग ऐसे होते हैं जो अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन जीवन की कठिन परिस्थितियों में हार मान लेते हैं, वहीं इरा सिंघल जैसे कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो जीवन की हर मुश्किल को पार कर अपने लक्ष्य को हासिल कर लेते हैं।


कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ लोग बिखर जाते हैं, जबकि कुछ लोग चमकते हैं। आपने UPSC की पढ़ाई करने वाले कई युवाओं के किस्से सुने होंगे. आज की कहानी है यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 2014 की टॉपर इरा सिंघल की, जिनसे हर कोई प्रेरणा ले सकता है। आम आदमी के लिए इरा सिंघल की कहानी किसी चमत्कार जैसी लगती है। शारीरिक रूप से विकलांग होने के बावजूद, ईरा यूपीएससी की सामान्य श्रेणी में शीर्ष पर रहने वाली देश की पहली प्रतिभागी हैं।

जुनून, शैली, रचनात्मकता, विरासत, विविधता:…

इरा सिंघल को आज एक प्रतिबद्ध, समर्पित और मेहनती अधिकारी के रूप में जाना जाता है। आपको बता दें कि इरा वर्तमान में विकलांग विभाग, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और नीति आयोग की ब्रांड एंबेसडर हैं। इसके साथ ही उनके पास निदेशक प्रेस एवं सूचना विभाग का अतिरिक्त प्रभार भी है। आइए जानते हैं इरा के आईएएस बनने तक का सफलता का सफर।

बचपन से ही डीएम बनना चाहती थी इरा
इरा सिंघल का जन्म यूपी के मेरठ जिले में हुआ था। उन्होंने अपने बचपन का शुरुआती हिस्सा वहीं बिताया। जिसके बाद वह अपने परिवार के साथ दिल्ली शिफ्ट हो गईं। इरा जब 8 साल की थीं और मेरठ में रहती थीं, तब वहां दंगों के चलते काफी देर तक कर्फ्यू लगा रहा। वह लोगों से सुनती थी कि डीएम ही कर्फ्यू लगाते हैं। तब उन्हें डीएम की शक्ति और जिम्मेदारियों के बारे में जानकारी मिली और तभी इरा ने फैसला किया कि वह भी बड़ी होकर डीएम बनेंगी।

अध्ययन के बाद रणनीति प्रबंधक
इरा ने अपनी स्नातक की पढ़ाई नेताजी सुभाष प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली से की। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने प्रबंधन अध्ययन संकाय से एमबीए की डिग्री हासिल की। उन्होंने एक बड़ी कन्फेक्शनरी फर्म में स्ट्रैटेजी मैनेजर के रूप में काम किया।

लेकिन इरा इस नौकरी से खुश तो थीं लेकिन संतुष्ट नहीं थीं। उन्होंने इस नौकरी से पैसा जरूर कमाया, लेकिन उनकी मेहनत ने किसी की जिंदगी नहीं बदली। वह एक ही बात सोचकर असंतुष्ट थी। इसलिए उन्होंने अपने बचपन के सपने को पूरा करने का फैसला किया और यूपीएससी की तैयारी करने लगे।

रूफ फाउंडेशन को दान के माध्यम से सामुदायिक सेवा में योगदान दें
इरा सिंघल ने साल 2010, 2011 और 2013 में यूपीएससी की परीक्षा दी थी और इन तीन प्रयासों में उन्हें आईआरएस की पोस्टिंग दी गई थी। इरा को 62% लोकोमोटर डिसेबिलिटी के कारण पद से जुड़ने की अनुमति नहीं दी गई थी। जिसके बाद आईआरए ने आयोग के खिलाफ सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (कैट) में केस दायर किया। यहां भी उन्हें काफी धैर्य और संघर्ष सहना पड़ा।

इरा ने वर्ष 2014 में अपना केस जीता और आईआरएस के लिए चुनी गईं। उन्हें सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क सेवा (आईआरएस) के सहायक आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था। इस बीच, उन्होंने अपनी रैंक में सुधार करने की कोशिश जारी रखी। केस का यह फैसला उनकी 2014 की मेन्स परीक्षा से पहले आया है।

2014 में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के टॉपर
इरा सिंघल ने 2014 में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के सामान्य वर्ग में टॉप करके इतिहास रच दिया था। वह पहली दिव्यांग थीं जिन्होंने सामान्य वर्ग में परीक्षा में टॉप किया था। इरा रीढ़ की वक्रता से पीड़ित है, जिसे स्कोलियोसिस भी कहा जाता है, लेकिन उसने कभी भी अपनी विकलांगता को अपने सपनों के मार्ग में बाधा नहीं बनने दिया

उसकी विकलांगता ने उसे अपने लक्ष्यों की ओर काम करने से कभी नहीं रोका, आईएएस अधिकारी बनने के लिए इरा ने कड़ी मेहनत की। उनका कहना है कि यह सब उनकी देश सेवा करने की इच्छा के कारण हुआ है।

बचपन से ही दूसरों की मदद करने का इरादा
इरा सिंघल अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में बताते हुए कहती हैं कि वह महिलाओं, बच्चों और शारीरिक रूप से विकलांग लोगों के कल्याण के लिए काम करना चाहती हैं। तमाम संघर्षों के बाद इरा सिंघल ने अपने मजबूत इरादों के दम पर सफलता का यह मुकाम हासिल किया है और यह भी साबित किया है कि अगर इंसान कुछ करने की ठान ले तो उसे सफल होने से दुनिया की कोई चीज नहीं रोक सकती। कर सकते हैं।
इरा की कहानी वाकई प्रेरणादायक और काबिले तारीफ है। जिस पर आज हर भारतीय को गर्व है। इरा का मानना ​​है कि आपके टैलेंट को आपसे बेहतर कोई नहीं पहचान सकता। इसलिए सफल होने के लिए अपना रास्ता खुद बनाएं और अपनी मंजिल खुद तय करें। यही सफलता का सफलता मंत्र भी है।

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